लो कर लो बात। माने कि अब साहबी दिखाने के पहले सोचना भी पड़ेगा? कम से कम इतना तो चेक करना ही पड़ेगा कि सामने वाला कहीं सांसद तो नहीं है। बात यह है कि दो साहब लोग लोकसभा सदस्यों के साथ सरकारी अधिकारियों द्वारा नवाचार प्रतिमानों के उल्लंघन और अवमानपूर्ण व्यवहार के मामले में फंस गए हैं। इस मामले की लोकसभा समिति ने हाल ही में बैठक भी बुला ली थी। एक साब कानपुर के जिला मजिस्ट्रेट हैं और दूसरे टीकमगढ़ के। कानपुर के डीएम साब के खिलाफ कार्यवाही की अनुशंसा भी कर दी गई है, हालांकि वे स्वयं आकर माफी की गुहार कर चुके हैं।
साहबी की इश्टाइल !
लेकिन साहबी सिर्फ खराब व्यवहार में नहीं होती। असली साहबी तो फाइल रोकने में होती है। जैसे केन्द्रीय कृषि मंत्रालय के संयुक्त सचिवान साहेबान। कार्यप्रणाली ऐसी सुस्त कि कछुआ भी शरमा जाए। यहां तक कि खुद कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह कृषि सचिव को बुलाकर नाराजगी व्यक्त कर चुके हैं। मंत्री ने तो सचिव से यह तक कहा है कि आप अपने सभी संयुक्त सचिवों से कहें कि अपने कमरे के बाहर एक बोर्ड लगवा लें और उस पर लिखें ‘फाइलें रोकना हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है।’
दार्जिलिंग संकट में मध्यस्थता
नेताजी सुभाष चंद्र बोस के परिवार के चंद्रा बोस पश्चिम बंगाल में बीजेपी के नेता हैं। बीजेपी के टिकट पर चुनाव भी लड़ चुके हैं। और इन दिनों दार्जिलिंग के गोरखा नेता गुरुंग और केन्द्र सरकार के बीच मध्यस्थ बने हुए हैं। गुरुंग के साथ उनकी मुलाकात हाल ही में हुई है और चर्चा यह है कि उनकी प्रधानमंत्री के साथ भी मुलाकात हो चुकी है। उनका कहना है कि गुरुंग ममता बनर्जी के साथ बातचीत के लिए तैयार हैं। शर्त सिर्फ यह है कि बातचीत दिल्ली में हो, और ममता बनर्जी गुरुंग पर दायर मामले वापस लें। हालांकि एसएस अहलूवालिया सहित बीजेपी के अधिकांश नेता इस मध्यस्थता से प्रसन्न नहीं हैं, लेकिन बात अब आम हो चुकी है।
नेताजी सुभाष चंद्र बोस के परिवार के चंद्रा बोस पश्चिम बंगाल में बीजेपी के नेता हैं। बीजेपी के टिकट पर चुनाव भी लड़ चुके हैं। और इन दिनों दार्जिलिंग के गोरखा नेता गुरुंग और केन्द्र सरकार के बीच मध्यस्थ बने हुए हैं। गुरुंग के साथ उनकी मुलाकात हाल ही में हुई है और चर्चा यह है कि उनकी प्रधानमंत्री के साथ भी मुलाकात हो चुकी है। उनका कहना है कि गुरुंग ममता बनर्जी के साथ बातचीत के लिए तैयार हैं। शर्त सिर्फ यह है कि बातचीत दिल्ली में हो, और ममता बनर्जी गुरुंग पर दायर मामले वापस लें। हालांकि एसएस अहलूवालिया सहित बीजेपी के अधिकांश नेता इस मध्यस्थता से प्रसन्न नहीं हैं, लेकिन बात अब आम हो चुकी है।
अमित शाह की डायरी
यह तो आप पढ़ ही चुके हैं कि अमित शाह नियमित तौर पर रात को डायरी लिखते हैं, 25 वर्ष पहले भी लिखते थे और आज भी लिखते हैं। किसी पत्रकार ने इन डायरियों को छापने की पेशकश की, तो अमित शाह का उत्तर था कि मेरी ये डायरियां बेहद निजी हैं, सिर्फ अपने आप के लिए लिखी हैं और मैंने अपने परिवार से कहा हुआ है कि मेरे देहांत के बाद इन्हें भी नष्ट कर दिया जाए।
यह तो आप पढ़ ही चुके हैं कि अमित शाह नियमित तौर पर रात को डायरी लिखते हैं, 25 वर्ष पहले भी लिखते थे और आज भी लिखते हैं। किसी पत्रकार ने इन डायरियों को छापने की पेशकश की, तो अमित शाह का उत्तर था कि मेरी ये डायरियां बेहद निजी हैं, सिर्फ अपने आप के लिए लिखी हैं और मैंने अपने परिवार से कहा हुआ है कि मेरे देहांत के बाद इन्हें भी नष्ट कर दिया जाए।
मॉय नेम इज अंबानी.. मुकेश अंबानी
मुकेश अंबानी होने का मतलब क्या होता है? बड़े अंबानी की बड़ी अट्टालिका में हाल ही में एक अग्निकांड हुआ था। छोटा सा मामला था, न किसी को चोट आई और न ज्यादा नुकसान हुआ। लेकिन इतनी देर में दिल्ली से तमाम मंत्रियों ने फोन करके खैरियत पूछ डाली। उधर मुंबई में इससे भी बड़ी बात थी। जिसे देखों वही बस इसकी बात कर रहा था।
मुकेश अंबानी होने का मतलब क्या होता है? बड़े अंबानी की बड़ी अट्टालिका में हाल ही में एक अग्निकांड हुआ था। छोटा सा मामला था, न किसी को चोट आई और न ज्यादा नुकसान हुआ। लेकिन इतनी देर में दिल्ली से तमाम मंत्रियों ने फोन करके खैरियत पूछ डाली। उधर मुंबई में इससे भी बड़ी बात थी। जिसे देखों वही बस इसकी बात कर रहा था।
Source:-Zeenews
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